शैशवावस्था में शारीरिक विकास (Physical Development in Infancy)
शैशवावस्था जीवन की सबसे महत्वपूर्ण  अवस्था है। शिशु का शारीरिक विकास जन्म के पूर्व गर्भावस्था से ही प्रारम्भ हो जाता है। इस समय माता के खान-पान रहन-सहन, स्वास्थ्य एवं उसके संवेगात्मक संतुलन पर विशेष ध्यान देना चाहिए। जन्म के बाद शैशवावस्था में विकास में दो सोपान हो जाते हैं
  • जन्म से 3 वर्ष
  • 3 वर्ष से 5 वर्ष

एडलर महादेय ने कहा, कि जन्म के कुछ माह बाद ही ये निश्चित किया जा सकता है कि जीवन में उसका क्या स्थान है।

शैषवावस्था में शारीरिक (Physical Development in Infancy)
  • भार जन्म के समय और पूरी शैशवावस्था में बालक का भार बालिका से अधिक होता है। जन्म के समय बालक का भार लगभग 15 पौंड और बालिका का भार लगभग 7.13 पौंड होता है। पहले 6 माह में शिशु का भार दुगुना और एक वर्ष के अन्त में तिगुना हो जाता है।
2   लम्बाई:  शैशावावस्था में 3 वर्ष तक बच्चों के विकास की गति अत्यन्त तीव्र होती है। जन्म के समय शिशु की लम्बाई औसत रूप से 50 सेमी0 होती है। प्रथम वर्ष के अन्त में वह 67 से 70 सेमी0, दूसरे वर्ष के अन्त तक 77 सेमी0 से 82 सेमी0 तक होती है तथा 6 वर्ष तक लगभग 100 सेमी0से 110 सेमी0 लम्बा हो जाता है।
  1. सिर व मस्तिष्क: नवजात शिशु की सिर की लम्बाई उसके शरीर के कुल लम्बाई की 1/4 होती है। पहले 2 वर्षों में सिर बहुत तीव्र गति से बढ़ता है तथा उसका भार शरीर के भार के अनुपात से अधिक होता है।
  2. हड्डियाँ: नवजात शिशु की हड्डियां छोटी और संख्या में 206 होती हैं। सम्पूर्ण शैशवावस्था में ये छोटी, कामेल, लचीली होती हैं। हड्डियाँ कैल्शियम, फास्फोरस और अन्य खनिज लवणों की सहायता से मजबूत होती हैं। इस आयु में शिशुओं के भोजन में इन लवणों की अधिकता होनी चाहिये।
  3. मांशपेशियां: शिशु की मांसपेशी का भार उसके शरीर के कुल भाग का 23% होता है। यह भार धीरे-धीरे बढ़ता चला जाता है। उसकी भुजाओं का विकास तीव्र गति से होता है। प्रथम दो वर्षों में भुजाएं दुगनी और टांगे डेढ़ गुनी हो जाती हैं। छः वर्ष की आयु तक मांसपेशियों में लचीलापन होता है।
  4. अन्य अंग: छठे माह में दूध के दांत निकलने प्रारम्भ हो जाते है। सबसे पहले नीचे के अगले दांत निकलते हैं और एक वर्ष की आयु तक उनकी संख्या 8 हो जाती है। लगभग 4 वर्ष की आयु तक दूध के सभी दांत निकल आते हैं। नवजात शिशु का सिर शरीर की अपेक्षा बड़ा होता है। जन्म के समय हृदय की धड़कन कभी तेज व कभी धीमी होती है। जैसे-जैसे हृदय बड़ा होता है, धड़कन में स्थिरता आती जाती है।

शिशु के आन्तरिक अंगों (पाचन अंग, फेफड़ा, स्नायु मडंल, रक्त संचार अंग, जनन अंग और ग्रान्थिया) का विकास तीव्रगति से होता है। शैशवावस्था के प्रथम तीन वर्ष विकास काल के होते हैं। अन्तिम तीन वर्षों में बच्चा मजबूती प्राप्त करता है।

बाल्यावस्था में शारीरिक विकास (Physical Development in Childhood)
बाल्यावस्था जीवन का अनोखा काल होता है। ये अवस्था 6 से 12 वर्ष तक मानी जाती है। बल्यावस्था के प्रथम तीन वर्षों में (6 से 9 वर्ष) शारीरिक विकास तीव्रगति से होता है और बाद के तीन वर्षों में इस विकास में स्थिरता आ जाती है।
  1. भार: इस अवस्था में बालक के भार में पर्याप्त वृद्धि होती है। 9 या 10 वर्ष की आयु तक बालकों का भार बालिकाओं से अधिक होता है। इसके बाद बालिकाओं का भार अधिक हानेा प्रारम्भ हो जाता है।
  2. लम्बाई: बाल्यावस्था में शरीर की लम्बाई कम बढ़ती है। इन सब वर्षों में लम्बाई 2 या 3 इंच ही बढ़ती है।
  3. हड्डियां: इस अवस्था में प्रथम 4-5 वर्षों में हड्डियों की संख्या में वृद्धि होती है। 10-12 वर्ष की आयु में हड्डियों का दृढ़ीकरण होता है।
  4. दांत: बाल्यावस्था के आरम्भ में दूध के दांत गिरने लगते हैं और उनके स्थान पर स्थायी दांत निकलने लगते हैं। 12-13 वर्ष की अवस्था तक सभी स्थायी दांत निकल आते हैं।
  5. मांसपेशियां: मांसपेशियों का भार 8 वर्ष तक कुल भार का 27 % हो जाता है। बालिकाओं की मांसपेशियां बालकों की अपेक्षा अधिक विकसित हातेी हैं।
  6. अन्य अंगों का विकास: बाल्यावस्था में मस्तिष्क आकार और तौल की दृष्टि से पूर्ण विकसित हो जाता है। बाल्यावस्था में सिर के आकार में क्रमशः परिवर्तन होता रहता है। इस अवस्था में बच्चों के लगभग सभी अंगों का पूर्ण विकास हो जाता है तथा वह अपनी शारीरिक गति पर नियंत्रण रखना सीख जाते हैं।


किशोरावस्था में शारीरिक विकास (Physical Development in Adolescence)  किशारोवस्था जीवन का सबसे कठिन काल है। ये परिवर्तन की अवस्था कहलाती है। किशोरावस्था में बालक तथा बालिकाओं का विकास तीव्र गति से होता है। बालकों  में तीव्रतम वृद्धि का समय 14 वर्ष की आयु तक तथा बालिकाओं में 11 से 18 वर्ष की आयु तक होता है।
  1. आकार एवं भार: -इस अवस्था में लम्बाई तेजी से बढ़ती है। बालक की लम्बाई 18 वर्ष की आयु तक तथा बालिका की लम्बाई 16 वर्ष की आयु तक बढ़ती है। इस अवस्था में बालकों का भार बालिकाओं से अधिक होता है।
  2. सिर व मस्तिष्कइस अवस्था में सिर व मस्तिष्क का विकास जारी रहता है। 15 या 16 वर्ष की आयु में सिर का लगभग पूर्ण विकास हो जाता है एवं मस्तिष्क का भार 1200 आरै 1400 ग्राम के बीच में होता है।
  3. हड्डियां: हड्डियों में पूर्ण मजबूती आ जाती है और कुछ छोटी हड्डियाँ एक दूसरे से जुड़ जाती हैं |
  4. अन्य अंगों का विकास: इस अवस्था में आँख, कान, नाक, त्वचा, स्वादेंद्रियाँ व कर्मेन्द्रियों का पूरा विकास हो जाता है। मांसपेशियों का विकास तीव्रगति से होता है। मस्तिष्क का विकास लगभग पूरा होजाता है।
  5. विभिन्न ग्रंथियां का विकास: किशोरावस्था में विभिन्न परिवर्तनों का आधार, अन्तःस्त्रावी ग्रंथियां होती है, जिनमें पिट्यूटरी, थायरायड, एड्रीनल ग्रंथियां प्रमुख हैं। इन ग्रंथियों के स्त्राव शारीरिक, मानसिक आरै भावात्मक विकास को प्रभावित करते हैं। इस अवस्था में बच्चे खेलकूद तथा अन्य क्रियाओं में अधिक सक्रिय हो जाते हैं। वे अपने कार्य स्वयं करने लगते हैं। दूसरों पर निर्भर नही करते हैं।

किशोर/ किशोरियों को शिक्षा देते समय भी उनकी शारीरिक अभिवृद्धि और परिवर्तनों को  ध्यान में रखना चाहिये। किशोरावस्था जीवन का वह समय है जब हड्डियाँ बड़ी शीघ्रता से बढ़ती व विकसित होती है। अतः उनके स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना चाहिये तथा उनके अनुकूल उचित शारीरिक शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिये।